“मिलकर सोचो, मिलकर चलो और मिलकर बोलो, यही हमारी भाषाई और सांस्कृतिक चेतना का मूल मंत्र है- अमित शाह – Prayas Uttarakhand

हिन्दी दिवस पर बोले गृह मंत्री—तकनीक से लेकर न्याय-शिक्षा तक भारतीय भाषाएं बनें भविष्य की धुरी

नई दिल्ली। हिन्दी दिवस के अवसर पर केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं और संस्कृति का स्वर्णिम पुनर्जागरण हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज समय की आवश्यकता है कि हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाएं तकनीक, विज्ञान, न्याय, शिक्षा और प्रशासन की आधारशिला बनें। शाह ने अपील की—“मिलकर सोचो, मिलकर चलो और मिलकर बोलो, यही हमारी भाषाई और सांस्कृतिक चेतना का मूल मंत्र है।”

अपने संदेश में अमित शाह ने याद दिलाया कि गुलामी के कठिन दौर में भारतीय भाषाएं स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज बनीं। गांव-देहात की बोली, लोकगीत, लोककथाएं और कविताएं ही आजादी के आंदोलन का आधार बनीं। वंदे मातरम् और जय हिंद जैसे नारे इसी भाषाई चेतना से उपजे और स्वतंत्र भारत के गौरव का प्रतीक बने।

उन्होंने कहा कि भारत मूलतः भाषा-प्रधान देश है, जहां भाषाओं ने सदियों से संस्कृति, परंपरा, दर्शन और अध्यात्म को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक, हर क्षेत्र की भाषाएं भारतीय समाज को जोड़ने और संवाद का माध्यम रही हैं।

शाह ने उदाहरण देते हुए कहा कि संत तिरुवल्लुवर की रचनाएं उत्तर भारत में भी सम्मान से पढ़ी जाती हैं, तुलसीदास और कबीर के दोहे दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी गूंजते हैं, और भूपेन हजारिका के गीत हरियाणा तक गुनगुनाए जाते हैं। यही हमारी भाषाई विविधता की ताकत है।

उन्होंने बताया कि संविधान निर्माताओं ने भाषाओं के महत्व को पहचानते हुए 14 सितम्बर 1949 को देवनागरी लिपि में हिंदी को राजभाषा के रूप में अंगीकृत किया। अनुच्छेद 351 में हिंदी के प्रचार-प्रसार और भारत की सामासिक संस्कृति के संवाहक के रूप में भूमिका तय की गई।

पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों—संयुक्त राष्ट्र, जी-20 और एससीओ—पर हिंदी और भारतीय भाषाओं में संवाद कर उनके स्वाभिमान को बढ़ाया है। 2024 में ‘भारतीय भाषा अनुभाग’ की स्थापना कर सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के सहज अनुवाद का लक्ष्य रखा गया है।

अमित शाह ने कहा कि डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के दौर में भारतीय भाषाओं को भविष्य की तकनीक और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुकूल बनाया जा रहा है।

उन्होंने अंत में कहा कि भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि समाज को ऊर्जा, आत्मबल और एकता का मंत्र देने वाली शक्ति है। यही कारण है कि हमारे कवि विद्यापति ने कहा था—
“देसिल बयना सब जन मिट्ठा”,
अर्थात अपनी भाषा सबसे मधुर होती है।

News Aajtakonline

sachin verma 10 gandhi road darshanlal chowk dehradun mbile no 9897944589